गरमी / Summer और आयुर्वेद भाग १
हमारे भारत वर्ष का अधिक काल गरमी वाला होता है परन्तु ग्रीष्म ऋतु तो सालभर में से जादा गरम रहनेवाला काल है इसीलिए इसे ग्रीष्म ऋतु कहा जाता है। इस ऋतु में गरमी क्यों होती है इस बारे में आयुर्वेद में कहता है की ग्रीष्म ऋतु में सूर्य (पृथ्वी के पास आ जाने के कारण) तीखी किरणों वाला हो जाता है, नैऋत्य दिशा से गरम, रुखी, कष्टदायक हवा बहती है जिससे पृथ्वी तपने लगती है, नदियां सूख जाती हैं या पतली धार वाली हो जाती हैं और सब दिशाएं गरम, जलती हुई सी मालूम होती हैं।
ग्रीष्म ऋतु यह आदानकाल की अन्तिम ऋतु है। वर्ष में दो काल होते हैं – आदानकाल और विसर्गकाल। दोनों कालों में 3-3 ऋतुएं होती हैं- आदानकाल में शिशिर, वसन्त और ग्रीष्म ऋतु तथा विसर्गकाल में है वर्षा, शरद और हेमन्त ऋतु। अतः वसंत ऋतु की समाप्ति के बाद ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होती है। अप्रैल, मई तथा जून के प्रारंभिक दिनों का समावेश ग्रीष्म ऋतु में होता है। जैसे जैसे आदानकाल में समय बीतता है वैसे पृथ्वी – सूर्य का अंतर कम हो जाता है अतः यह काल रूखा, सूखा और गरम होते जाता है। इसलिए इस आदानकाल के प्रभाव से जीवों का शरीर अत्यन्त दुर्बल हो जाता है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी प्रखर किरणों से संसार का स्नेह, आर्द्रता, चिकनाई सोख लेता है जिससे सिर्फ मनुष्यों का शरीर ही नहीं बल्कि पेड़ पौधों, वनस्पति, नदी तालाब, कुओं का जलीयांश भी सूख जाता है। यह ग्रीष्म ऋतु का गुण-धर्म है और हमें इस गुणधर्म को ध्यान में रख कर ऋतु के अनुकूल तथा हितकारी आहार-विहार का ही पालन करना चाहिए ताकि हम मौसमी (सीजनल seasonal) बीमारियों के जाल में फसने से बच सकें।
अत्यंत रूक्ष बनी हुई वायु के कारण, पैदा होने वाले अन्न-पदार्थों में कटु (तिखा), तिक्त(कड़वा), कषाय(कसैला) इन रसों का प्राबल्य बढ़ता है और इनके सेवन से मनुष्यों में दुर्बलता आने लगती है। शरीर में वातदोष का संचय होने लगता है। ग्रीष्म ऋतू में कफ का शमन व वायु का संचय होने लगता है। अगर इन दिनों में वातप्रकोपक आहार विहार करते रहें तो यही संचित वात ग्रीष्म ऋतु के बाद आने वाली वर्षा ऋतु में अत्यन्त कुपित होकर विविध वात व्याधियों को आमंत्रण देता है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों व अतिरूक्ष हवा से प्राणियों के शरीर का जलीयांश कम हो जाता है जिससे कमजोरी, बेचैनी, ग्लानि, अनुत्साह, थकान आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं और प्यास ज्यादा लगती है। इसलिए ग्रीष्म ऋतु में कम आहार लेकर बार-बार शीतल परिणाम करनेवाला जल एवं पेय पदार्थ पीना हितकर है।
–क्रमशः
– वैद्य आनंद कुलकर्णी M.D. (Med. Ayu),
CYEd, DYA, MA (Sanskrit)
अमृता आयुर्वेद पंचकर्म सेंटर, नागेश टॉवर, हरिनिवास, ठाणे प. मो. 9869105594
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